चेतेश्वर पुजारा: खामोश योद्धा, जो अब टीम इंडिया का भविष्य गढ़ने को तैयार
नई दिल्ली।
कभी-कभी क्रिकेट में वो खिलाड़ी इतिहास लिख जाते हैं, जो शोर नहीं मचाते। जिनके बल्ले की गूंज में चौकों-छक्कों का शोर नहीं, बल्कि धैर्य, साहस और समर्पण की कहानी सुनाई देती है। भारतीय क्रिकेट में ऐसा ही नाम है चेतेश्वर पुजारा।
राजकोट की गलियों से निकलकर ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न, इंग्लैंड के ओवल, और दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग तक, पुजारा ने एक ही पहचान बनाई—भारतीय टेस्ट टीम की रीढ़। हाल ही में उन्होंने क्रिकेट के सभी फॉर्मेट को अलविदा कहा, लेकिन साथ ही यह भी साफ कर दिया कि उनका क्रिकेट से रिश्ता खत्म नहीं होगा। अब वो टीम इंडिया की कोचिंग की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं।
बल्ले से लिखी गई खामोश कहानियाँ
चेतेश्वर पुजारा ने भारतीय टेस्ट क्रिकेट को कई यादगार पल दिए। उनके करियर के आँकड़े खुद कहानी कहते हैं—
-
103 टेस्ट मैच
-
7000 से अधिक रन
-
18 शतक और 35 अर्धशतक
लेकिन उनकी असली पहचान आँकड़ों से नहीं, बल्कि वो जज़्बा और धैर्य है, जिसने उन्हें क्रिकेट के इतिहास में अमर कर दिया।
ऑस्ट्रेलिया 2018-19: भारत का ऐतिहासिक विजयपथ
भारत ने जब 2018-19 में ऑस्ट्रेलिया को उन्हीं की धरती पर टेस्ट सीरीज़ में हराया, तो इसके केंद्र में चेतेश्वर पुजारा थे।
-
एडिलेड टेस्ट में 123 रन की जुझारू पारी खेली।
-
मेलबर्न में शानदार 106 रन बनाए।
-
सीरीज़ में कुल 521 रन ठोके और ‘मैन ऑफ द सीरीज़’ बने।
ऑस्ट्रेलिया के तेज़ गेंदबाज़ मिचेल स्टार्क, पैट कमिंस और हेज़लवुड लगातार उन पर हमला करते रहे, लेकिन पुजारा चट्टान की तरह डटे रहे। उन्होंने भारत को पहली बार ऑस्ट्रेलिया में सीरीज़ जिताने का सपना पूरा किया।
ब्रिस्बेन 2021: दर्द झेलकर भी डटे रहे
2021 की बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में ब्रिस्बेन टेस्ट भारतीय क्रिकेट के इतिहास का सुनहरा पन्ना है। यह वही मैच था जहाँ पुजारा ने अपने शरीर को ढाल बना दिया।
-
पैट कमिंस और हेज़लवुड की तेज़ गेंदें लगातार उनके शरीर पर लगीं।
-
हेलमेट, कंधे, पसलियों, उंगलियों पर चोटें आईं।
-
लेकिन पुजारा नहीं झुके।
उन्होंने 56 रन की पारी खेली, जो आँकड़ों में छोटी दिखती है, लेकिन भारत के लिए उस जीत की नींव रखी। उनकी यह पारी शायद आने वाली पीढ़ियों के लिए धैर्य और साहस की सबसे बड़ी मिसाल रहेगी।
कोचिंग की ओर पहला कदम
न्यूज़ 18 हिंदी से एक्सक्लूसिव बातचीत में पुजारा ने साफ कर दिया कि अगर उन्हें कोच बनने का मौका मिलता है तो वो खुशी-खुशी ये जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं।
उन्होंने कहा:
“मैं क्रिकेट से हमेशा जुड़ा रहना चाहता हूं। जो अनुभव मैंने 17 साल की उम्र से लेकर अब तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलकर पाया है, उसे मैं युवा खिलाड़ियों के साथ साझा करना चाहता हूं। अगर मुझे भारतीय टीम के साथ कोचिंग का मौका मिलता है, तो ये मेरे लिए सम्मान की बात होगी।”
क्यों पुजारा बन सकते हैं एक सफल कोच?
-
अनुभव की दौलत – दुनिया की सबसे मुश्किल पिचों पर खेल चुके हैं।
-
धैर्य और अनुशासन – दबाव में शांत रहने की कला जानते हैं।
-
प्रेरणा का स्रोत – आज के युवाओं को दिखा सकते हैं कि टेस्ट क्रिकेट सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि चरित्र की परीक्षा है।
-
रणनीतिक सोच – विरोधी गेंदबाजों की योजना समझने और उन्हें झेलने की क्षमता, जो कोचिंग में भी काम आएगी।
बीसीसीआई के लिए संकेत
पुजारा का यह बयान साफ संकेत है कि वो जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं। अब सवाल है कि बीसीसीआई उनके क्रिकेटिंग दिमाग का इस्तेमाल कैसे करती है।
आज भारतीय टेस्ट टीम कई चुनौतियों से जूझ रही है। विदेशों में प्रदर्शन में गिरावट, लंबे समय तक टिकने वाले बल्लेबाज़ों की कमी, और मानसिक मजबूती की चुनौती—इन सबका हल पुजारा जैसे खिलाड़ी की कोचिंग से निकाला जा सकता है।
क्रिकेट से अटूट रिश्ता
चेतेश्वर पुजारा का कहना है कि क्रिकेट ने उन्हें बहुत कुछ दिया है। अब वो मानते हैं कि समय है इस खेल को लौटाने का। उनका इरादा साफ है—अनुभव को नई पीढ़ी तक पहुंचाना।
उनकी कोचिंग का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि भारतीय टीम को न सिर्फ तकनीकी मार्गदर्शन मिलेगा, बल्कि मानसिक मज़बूती और धैर्य की वह कला भी मिलेगी जो बड़े मैच जिताती है।
