वाराणसी की पावन भूमि, जहां जीवन और मोक्ष का संगम होता है, वहीं शनिवार की रात एक दिव्य आत्मा ने अंतिम सांस ली। बाबा शिवानंद – एक ऐसा नाम, जिसने भारत को यह विश्वास दिलाया कि योग, संयम और साधना से उम्र को परास्त किया जा सकता है। 128 वर्षों तक इस धरती पर मानव सेवा और योग साधना का जीवन जीने वाले पद्मश्री बाबा शिवानंद का निधन केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं है, बल्कि एक युग का समाप्त होना है।
बीएचयू अस्पताल में ली अंतिम सांस
शनिवार रात करीब 8:45 बजे, वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) अस्पताल से आई खबर ने देश भर के लाखों लोगों को भावुक कर दिया। तीन दिनों से अस्पताल में भर्ती बाबा शिवानंद की तबीयत लगातार नाजुक बनी हुई थी। डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद वे जीवन की अंतिम लड़ाई हार गए। उनके निधन की खबर जैसे ही बाहर आई, बीएचयू के बाहर चाहने वालों की भारी भीड़ जमा हो गई। लोग आंखों में आंसू और हाथों में फूल लेकर इस योगी को अंतिम विदाई देने पहुंचे।
एक साधारण बचपन, असाधारण जीवन
बाबा शिवानंद का जन्म 8 अगस्त 1896 को अविभाजित भारत के श्रीहट्ट जिले (वर्तमान में बांग्लादेश) के हरिपुर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। परिवार में माता-पिता और एक बड़ी बहन के साथ कुल चार सदस्य थे। उनका बचपन अभावों और संघर्षों में बीता। उनके माता-पिता भिक्षा मांगकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। लेकिन जब परिस्थितियां और कठिन हो गईं, तब महज चार वर्ष की आयु में उन्हें बाबा श्री ओंकारानंद गोस्वामी को सौंप दिया गया, ताकि वे उनकी देखरेख कर सकें।
गुरु के संरक्षण में शिवानंद ने वेद-शास्त्र, योग और अध्यात्म का अध्ययन शुरू किया। जीवन का पहला पाठ ही त्याग, सेवा और संयम था। यही सिद्धांत आगे चलकर उनके पूरे जीवन की आधारशिला बने।
योग को बनाया जीवन का मिशन
बाबा शिवानंद का जीवन योग, प्राणायाम, आयुर्वेद और संतुलित आहार का प्रतीक रहा। उन्होंने न केवल स्वयं इनका पालन किया, बल्कि हजारों लोगों को योग की शिक्षा भी दी। वाराणसी में उनका आश्रम वर्षों से योग की साधना का केंद्र बना रहा। सुबह चार बजे उठकर स्नान, प्राणायाम, सूर्य नमस्कार और सात्विक भोजन – यही उनका जीवन था।
उनका मानना था कि “स्वस्थ जीवन जीने के लिए दवाइयों की नहीं, बल्कि अनुशासन, योग और सकारात्मक सोच की जरूरत होती है।” वे भोजन में सादगी, जीवन में नियमितता और मन में शांति को सर्वोच्च मानते थे।
पद्मश्री सम्मान: एक ऐतिहासिक क्षण
साल 2022 में जब बाबा शिवानंद को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया, तब वे 125 वर्ष के थे। राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में सफेद धोती-कुर्ता पहने, नंगे पैर चलकर जब वे मंच पर पहुंचे, तो पूरा सभागार तालियों की गूंज से भर उठा। उन्होंने मंच पर पहुंचते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रणाम किया। प्रधानमंत्री भी अपनी कुर्सी से खड़े होकर उन्हें झुककर नमन किया – यह दृश्य आज भी करोड़ों भारतीयों की स्मृति में जीवित है।
उसके बाद उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी झुककर नमस्कार किया, जिन्हें देख खुद राष्ट्रपति को उन्हें उठाकर गले लगाया। यह क्षण भारतीय संस्कारों, गुरु-शिष्य परंपरा और योग की महानता का प्रतीक बन गया।
पीएम मोदी की श्रद्धा और सम्मान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार बाबा शिवानंद की आयु और ऊर्जा का जिक्र अपने भाषणों में कर चुके हैं। उन्होंने बाबा को भारतीय संस्कृति और योग का जीवंत उदाहरण बताया था। जब बाबा को पद्मश्री मिला, तब प्रधानमंत्री ने कहा था – “बाबा शिवानंद का जीवन हमें सिखाता है कि योग से न केवल शरीर स्वस्थ रहता है, बल्कि उम्र भी बढ़ाई जा सकती है।”
सादा जीवन, उच्च विचार
बाबा शिवानंद का जीवन एक खुले ग्रंथ की तरह था। वे सादा भोजन करते थे – उबली दाल, चावल, बिना मसाले की सब्जी और दो रोटी। न उन्होंने कभी मोबाइल रखा, न कोई विलासिता अपनाई। फर्श पर सोते थे और छोटे तकिये का ही इस्तेमाल करते थे। उनका कहना था कि ज़मीन से जुड़ कर रहने से शरीर भी स्वस्थ और मन भी शांत रहता है।
अंतिम यात्रा: पूरे शहर की आंखें नम
बाबा शिवानंद की अंतिम यात्रा रविवार सुबह वाराणसी के उनके आश्रम से निकाली गई। हजारों लोग ‘बाबा अमर रहें’ के नारों के साथ उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे। फूलों से सजी उनकी अर्थी को जब उठाया गया, तो कई लोग फूट-फूटकर रो पड़े। अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर वैदिक विधि से किया गया। उनकी समाधि वहीं पर बनाई जाएगी, जहां से उन्होंने योग की शिक्षा दी।
सिर्फ शरीर गया, विचार अमर रहेंगे
बाबा शिवानंद अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका जीवन, उनकी साधना और उनका संदेश हमेशा जीवित रहेगा। उन्होंने यह साबित कर दिया कि भारत की परंपरा और योग विज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सदियों पहले था।
वे एक संत थे, शिक्षक थे, योगी थे और एक जीवंत प्रेरणा थे। बाबा शिवानंद चले गए, पर उन्होंने भारतीय समाज को आत्मसंयम, सेवा और संतोष की जो शिक्षा दी है, वह पीढ़ियों तक लोगों का मार्गदर्शन करती रहेगी।