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जेल की दीवारों के पीछे छिपा 53 लाख का फर्जी खेल…!

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आजमगढ़ जेल से 53 लाख की हैरान कर देने वाली ठगी – जेल के भीतर कैदियों और कर्मचारियों की ‘फर्जीवाड़ा फैक्ट्री’ का खुलासा!


आज़मगढ़ की मंडलीय/जिला जेल से एक ऐसा भ्रष्टाचार और ठगी का खेल सामने आया है, जिसने पूरे जिले के प्रशासन को हिला कर रख दिया है। जेल के भीतर बैठे कैदियों और जेलकर्मियों की मिलीभगत से करीब 53 लाख रुपये का गबन किया गया। ये पैसा किसी और के नहीं, बल्कि जेल अधीक्षक के सरकारी खाते से धीरे-धीरे उड़ाया गया। पुलिस ने इस मामले का पर्दाफाश करते हुए दो पूर्व बंदियों और दो जेल कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है।


पूरा मामला तब उजागर हुआ जब जेल अधीक्षक आदित्य कुमार ने एक वरिष्ठ सहायक मुशीर अहमद से अस्पताल भुगतान की रकम का हिसाब मांगा। जवाब टालमटोल वाला मिला, तो शक गहराया। जब बैंक स्टेटमेंट निकलवाया गया, तो सच सामने आया — जेल अधीक्षक के सरकारी खाते से बंदी रामजीत यादव उर्फ संजय के खाते में ₹2.60 लाख ट्रांसफर किए गए थे।
दरअसल, रामजीत पत्नी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा था और 20 मई 2024 को जमानत पर रिहा हुआ था। रिहाई के वक्त वह जेल की 3–4 चेकबुक चुपके से उठा ले गया।

रिहाई के बाद उसने जेल अधीक्षक के फर्जी हस्ताक्षर और मोहर लगाकर सरकारी खाते से रकम निकालना शुरू कर दिया। इस खेल में उसके साथी बने मुशीर अहमद (वरिष्ठ सहायक), शिवशंकर (बंदी राइटर) और अवधेश पांडेय (चौकीदार)
इन चारों ने मिलकर करीब 17 महीनों तक जेल अधीक्षक के नाम पर फर्जी चेक काटे और रकम अपने खातों में ट्रांसफर कराई।


पुलिस जांच में पता चला कि रामजीत ने जेल से रिहा होने के बाद हर हफ्ते कुछ-कुछ रकम निकालकर 52.85 लाख रुपये हड़प लिए।
उसने पूछताछ में बताया कि 25 लाख उसने बहन की शादी में खर्च किए, 3.75 लाख में बुलेट बाइक खरीदी और 10 लाख रुपये पुराने कर्ज चुकाने में लगाए।
बाकी पैसे उसके साथियों ने आपस में बांट लिए — मुशीर अहमद ने 7 लाख, शिवशंकर ने 5 लाख और अवधेश पांडेय ने 1.5 लाख रुपये अपनी ऐशो-आराम में उड़ा दिए।

पुलिस ने रामजीत के पास से बुलेट मोटरसाइकिल, मोबाइल फोन, फर्जी मुहर, बैंक चेक की फोटो और बैंक स्टेटमेंट बरामद किए हैं। साथ ही उसके यूनियन बैंक खाते में बचे ₹23,000 को फ्रीज कर दिया गया है।


“यह मामला जेल और बैंकिंग सिस्टम दोनों के लिए आंखें खोलने वाला है। चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर विधिक कार्रवाई की जा रही है।”


जेल की दीवारों के भीतर हुआ यह फर्जीवाड़ा अब कई सवाल खड़े कर रहा है — कैसे जेल से चेकबुक निकली, हस्ताक्षर फर्जी बने और 17 महीने तक किसी को भनक तक नहीं लगी?


आज़मगढ़ पुलिस ने भले ही पर्दाफाश कर दिया हो, लेकिन इस ‘जेल मनी स्कैम’ ने जेल सुरक्षा पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है।

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