आज़मगढ़ के ब्रह्मस्थान पुलिस चौकी के पास स्थित नजमा हॉस्पिटल में डॉक्टरों की टीम ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जो अस्पताल के लिए ऐतिहासिक रिकॉर्ड बन गया। सरायमीर कस्बे में जन्मे एक प्रीमैच्योर नवजात को गंभीर हालत में नजमा हॉस्पिटल लाया गया था, जिसकी सांस लेने की क्षमता बेहद कमजोर थी। बच्चे को डॉक्टरों ने तुरंत वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा, जहां वह पूरे 21 दिन तक जीवन-मृत्यु से जूझता रहा।
सीनियर कंसलटेंट चाइल्ड एंड न्यूटल डिजीज, डॉ. जोरार अहमद ने बताया कि बच्चे की कंडीशन बेहद नाजुक थी। गाइनेकोलॉजिस्ट द्वारा डिलीवरी के बाद उसे एनआईसीयू रेफर किया गया था और फिर गंभीर हालत के चलते नजमा हॉस्पिटल लाया गया। डॉक्टरों की टीम—डॉ. अब्दुल्ला इम्तियाज, डॉ. जफर तारिक और अन्य ने मिलकर बच्चे को वेंटिलेटर पर रखा और लगातार मॉनिटरिंग की। लंबे संघर्ष के बाद बच्चे को एक्सवेट कर सीपैप मशीन पर शिफ्ट किया गया और धीरे-धीरे ऑक्सीजन सपोर्ट हटाने के बाद वह पूरी तरह सामान्य हो गया।
डॉ. अहमद ने कहा कि यह अस्पताल का पहला मामला है, जिसमें कोई नवजात 21 दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद सर्वाइव कर सका। उन्होंने गाइनेकोलॉजिस्ट से अपील की कि प्रीमैच्योर डिलीवरी होने पर बच्चों को समय रहते अच्छे सेंटर पर रेफर करें ताकि समय पर सर्फेक्टेंट इंजेक्शन देकर फेफड़ों की परिपक्वता बढ़ाई जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि जन्म के तुरंत बाद रूटीन चेकअप बेहद जरूरी है, क्योंकि कई बार बच्चे कंजेनाइटल एनोमली से पीड़ित होते हैं, जिनका समय पर पता लगना ज़रूरी है।
बच्चे के पिता शाहनवाज़ अहमद ने बताया कि इलाज आयुष्मान भारत योजना के तहत हुआ, जिससे एक भी रुपया खर्च नहीं करना पड़ा। करीब 40 दिन अस्पताल में रहने के बावजूद इलाज मुफ्त हुआ और बच्चा स्वस्थ होकर घर लौट रहा है। उन्होंने डॉक्टरों की देखभाल की सराहना करते हुए कहा कि अगर आयुष्मान कार्ड न होता, तो इतने लंबे इलाज का खर्च उठा पाना संभव नहीं था।
परिजनों और अस्पताल प्रशासन ने इसे एक बड़ी सफलता बताया। नजमा हॉस्पिटल की यह उपलब्धि न केवल आज़मगढ़ बल्कि पूर्वांचल के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और डॉक्टरों की मेहनत का बड़ा उदाहरण है।
