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सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी को लगाई फटकार

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीडीए) द्वारा मकान गिराने की कार्रवाई को अवैध और अमानवीय करार देते हुए कड़ी फटकार लगाई। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि इस प्रकार की कार्रवाई न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि यह लोगों के अधिकारों का भी हनन है। अदालत ने कहा कि “राइट टू शेल्टर” (आवास का अधिकार) नाम की भी कोई चीज होती है, और उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

2021 में प्रयागराज प्रशासन ने गैंगस्टर अतीक अहमद की संपत्ति समझकर वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और तीन अन्य लोगों के मकान गिरा दिए थे। इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी की इस कार्रवाई को कठोर शब्दों में निंदा की और कहा कि यह मामला “अत्याचार” जैसा प्रतीत होता है। न्यायमूर्ति ओका ने टिप्पणी की, “कोई भी प्रशासन इस तरह मनमाने ढंग से नोटिस जारी कर संपत्तियों को ध्वस्त नहीं कर सकता। नोटिस की प्रक्रिया भी उचित होनी चाहिए।”

मुआवजा देने का आदेश

अदालत ने प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी को आदेश दिया कि जिन लोगों के मकान गिराए गए हैं, उन्हें छह हफ्तों के भीतर 10-10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।

नोटिस देने की प्रक्रिया पर सवाल

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि उन्हें 6 मार्च 2021 की रात को नोटिस मिला, जबकि नोटिस पर 1 मार्च की तारीख दर्ज थी। इसके ठीक अगले दिन यानी 7 मार्च को उनके मकान गिरा दिए गए। इस पर कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा कि नोटिस को सही तरीके से क्यों नहीं भेजा गया। जस्टिस ओका ने कहा, “कोई इस तरह से नोटिस देगा और अगले ही दिन तोड़फोड़ कर देगा? यह पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है।”

अंबेडकर नगर की घटना का भी किया जिक्र

 

न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने यूपी के अंबेडकर नगर में 24 मार्च को हुई एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा था और एक आठ साल की बच्ची अपनी किताबें लेकर भाग रही थी। इस तस्वीर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।

हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट की असहमति

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के दावे को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी थी। सरकार का कहना था कि यह भूमि नजूल लैंड थी और सार्वजनिक कार्यों के लिए इस्तेमाल की जानी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को स्वीकार नहीं किया और उचित प्रक्रिया के पालन की जरूरत पर बल दिया।

बुलडोजर एक्शन पर सख्त रुख

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी सरकार को इस तरह रातों-रात बुलडोजर चलाकर लोगों के घर तोड़ने का अधिकार नहीं है। अदालत ने यूपी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, “यह मनमानी है। आप बिना पूर्व सूचना और उचित प्रक्रिया के घरों को ध्वस्त नहीं कर सकते। परिवारों को घर खाली करने का समय मिलना चाहिए और घर के सामान का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला प्रशासनिक मनमानी के खिलाफ एक कड़ा संदेश है। यह मामला सरकारों और प्रशासनिक निकायों को यह याद दिलाने का काम करेगा कि कानून और मानवाधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि आवास का अधिकार मौलिक अधिकारों का हिस्सा है और किसी भी सरकार को इसे अनदेखा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

 

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