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राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल का निधन

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राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी और पूर्व बिहार विधान परिषद के सदस्य कामेश्वर चौपाल का 68 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उन्होंने दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। कामेश्वर चौपाल का नाम राम मंदिर आंदोलन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि उन्होंने ही 9 नवंबर 1989 को राम मंदिर निर्माण की पहली ईंट रखी थी। इस योगदान के लिए उन्हें प्रथम कार सेवक का दर्जा दिया गया था।

राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका

अयोध्या में भगवान श्री रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण ऐतिहासिक घटना रही, लेकिन इस आंदोलन की नींव में कामेश्वर चौपाल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। 9 नवंबर 1989 को उन्होंने राम मंदिर की पहली आधारशिला रखी थी, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। इसी तिथि को, 9 नवंबर 2019 को, सुप्रीम कोर्ट ने भी राम मंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।

राजनीतिक सफर

राम मंदिर की आधारशिला रखने के बाद कामेश्वर चौपाल विधिवत रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए। 1991 में बीजेपी ने उन्हें रोसड़ा लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन वे चुनाव हार गए। इसके बाद 1995 में उन्हें बेगूसराय की बखरी विधानसभा सीट से टिकट दिया गया, जहां भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

हालांकि, 2002 में उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य बनाया गया और वे 2014 तक इस पद पर बने रहे। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें सुपौल सीट से टिकट दिया, लेकिन वे जीत दर्ज नहीं कर सके। 2020 में जब बिहार में डिप्टी सीएम पद के लिए चर्चा हुई, तब भी उनका नाम प्रमुखता से सामने आया था।

व्यक्तिगत जीवन और शिक्षा

कामेश्वर चौपाल का जन्म 24 अप्रैल 1956 को हुआ था। उन्होंने मधुबनी के जेएन कॉलेज से स्नातक की परीक्षा पास की और 1985 में मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से एमए की डिग्री प्राप्त की।

राम मंदिर आंदोलन में योगदान

राम मंदिर आंदोलन में दलित समाज से आने वाले कामेश्वर चौपाल का योगदान विशेष रहा। उन्हें पहली ईंट रखने का अवसर देकर संघ परिवार और विश्व हिंदू परिषद ने सामाजिक समरसता का संदेश दिया था।

अंतिम संस्कार

उनके निधन की खबर से राजनीति और राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लोगों में शोक की लहर दौड़ गई। अंतिम संस्कार उनके पैतृक स्थान पर किया जाएगा, जिसमें कई बड़े नेता और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होंगे।

 

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