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त्याग बलिदान और साहस की प्रतिमूर्ति थी माता रमाबाई अम्बेडकर

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रिपोर्ट – परवेज आलम 

पुण्यतिथि पर प्रबुद्ध बाल रंग कार्यशाला के बच्चे श्रद्धांजलि अर्पित कर किया नमन

प्रयागराज। विदेश में पढ़ाई करके लौटने के बाद एक दिन बाबा साहब ने रमाबाई से पूछा रमा तूने मेरी अनुपस्थित में घर परिवार को कैसे सम्भाला, घर में कुछ भी नही होने पर तूने घर परिवार का पालन पोषण कैसे किया। रमा ने इन प्रश्नो का कोई उत्तर नही दिया वह अपना सिर झुकाए चुपचाप बैठी रही तब बाबा साहब ने यशवंत और मुकुंद से भी यही प्रश्न किया तो दोनों बच्चों ने पूरी कहानी बता दी की कैसे घर में अभावों की वजह से बाजरे की चार रोटी बनाती उसमे से एक एक रोटी यशवन्त मुकुंद और शंकर को देती और एक रोटी के तीन टुकड़े करके मीरा बुआ, लक्ष्मी चाची और एक टुकड़ा स्वयं रमा खाती। कभी कभी चावल होने पर उसे बिना सब्जी या दाल के चटनी व प्याज के साथ खाती थी, कैसे पड़ोसियो के तानो से बचने के लिए रमा परिवार पालने के लिए मीलों पैदल चलकर लकड़ी बीनने या तो सन्ध्या रात के अँधेरे में या सबेरे धुंधलके में जाती ताकि कोई देख न ले नही तो पड़ोसी ताने मारती कि देखो बैरिस्टर की पत्नी लकड़ी बिनती फिरती है। रमा गोबर इकट्ठा करके उसके उपले बनाकर उन्हें बेचने के लिए मुम्बई के वर्ली तक ले जाती थी और रात 9 बजे तक वापस आती थी और बहुत सारी बातें उन्होंने बाबा साहब को बताई उक्त बातें यमुनापार की तहसील बारा के विकासखंड जसरा स्थित कलिका का पूर्वा मैं प्रबुद्ध फाउंडेशन द्वारा संचालित प्रस्तुतिपरक ग्रीष्मकालीन प्रबुद्ध बाल रंग कार्यशाला के संयोजक उच्च न्यायालय के अधिवक्ता रंगकर्मी रंग निदेशक आईपी रामबृज ने रमाबाई अंबेडकर की पुण्यतिथि पार आयोजित श्रद्धांजली सभा में कहीं।
रामबृज ने आगे बताया की रमा की दुखभरी कहानी सुनकर बाबा साहब अपने अध्ययन कक्ष में चले गए और दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया। वे रमाई की दुखभरी कहानी सुनकर बाबा साहेब बहुत ही भाव विव्हल हो गए व घण्टो चुपचाप अकेले बन्द कमरे में आंसू बहाते रहे। रमाई उनकी पत्नी नही बल्कि करुणा की देवी थी। उन्हें ये सब परिवार को गरीबी व भुखमरी से बचाने के लिए किया। रमाई ने स्वयं दारुण दुःख भोगे परन्तु परिवार को टूटने व कष्ट नही होने दिया व न ही कभी अपने पत्रों में दुःख की कहानी लिखी। वह जानती थी की पति विदेश में है यदि उन्हें मेरे दुखों का पता चला तो उनके अध्ययन में बाधा पड़ सकती है। रमा दुखों को कड़वी दवा समझकर पीती रही पर किसी के समक्ष उन्हें उजागर नही किया। माता रमा के विश्वास और त्याग से बाबा साहब पढ़े और बाबा साहब के ज्ञान, त्याग और संघर्ष से हम पढ़े लिखे। अब हमें हमारी जिम्मेदारी निभानी है ताकि माता रमाई का त्याग और बाबा साहब के संघर्ष की कहानी हर मन मस्तिस्क में एक हलचल पैदा कर दे ओर बाबा साहब के सपनों का भारत बनाने में हम कामयाब हो।
श्रद्धांजली मे मानसी गौतम, अंशिका सोनकर, अंजली सोनकर, मानसी सोनकर, अंशिका गौतम, आजाद गौतम, निथिलेश गौतम, गुड़िया सोनकर, सोनम, शिवानी, आशीष जाटव, नीतू, आराध्या, नीलम, करीना गौतम, राधिका, रोहिणी, प्रिया श्रीवास्तव, शिवम सोनकर, लक्ष्मी, मोनिका, आस्था गौतम, शुभम, नेहा, प्रियंका गौतम, साक्षी आदि उपस्थित रहे।

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