आजमगढ़ : हमारे देश के नदियों के किनारों आदि काल से ही जीवन या यूँ कहें की जीवन का विस्तार होता आया है …अगर हमारी नदियाँ धार्मिक हैं , सांस्कृतिक हैं …तो सामाजिक भी हैं …ऐसी जीवन दायिनी नदियों का अतुल्य इतिहास है . ये नदिया ही हैं जो भारत की धरा को अभिसिंचित करती रहती हैं ..देश में बहुत सी ऐसी नदियाँ है जिनका धार्मिक और पौराणिक महत्त्व है . आज ऐसी ही एक नदी की कहानी हम आपको दिखाने जा रहे हैं , जिसके तीरे – तीर चलते हुए महा ऋषि विश्वामित्र के साथ प्रभु श्रीराम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण असुरों से ऋषि – मुनियों और यज्ञ की रक्षा के लिए बक्सर गए .
जिस तरह से गंगा नदी को माँ गंगा कहा जाता है , ठीक वैसे ही आज़मगढ़ में बहने वाली तमसा नदी को भी माँ तमसा कहकर बुलाया जाता है …इसी तमसा नदी के किनारे प्रत्येक माह की पूर्णिमा के दिन 5 साल से माँ तमसा की आरती की जाती है . एडवोकेट अनिल कुमार सिंह व उनके सहयोगियों ने माँ तमसा की आरती के 5 साल पूरे होने पर १२ अगस्त को एक भव्य भंडारे और प्रसाद वितरण के साथ ही माँ तमसा की महा आरती का कार्यक्रम भि रखा गया ….जिसमे लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी …अगर आप उस आरती में शामिल नहीं हो पायें हैं तो हम आपको पहले वो आरती दिखाते हैं ….
आरती माँ तमसा
माँ तमसा आरती समिति के संयोजक एडवोकेट अनिल कुमार सिंह ने बताया कि ये आरती सितम्बर २०१७ से शुरू हुई और अनवरत 5 साल चलने के बाद भव्य भंडारे और प्रसाद का वितरण किया गया . उन्होंने कहाकि जब एक साल पूरा हुआ था तब भी भंडारा किया गया था . इसे करने के पीछे मकसद बस इतना है कि ये नदिया हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं इनके बिना जीवन ही संभव नहीं है . लोग माँ तमसा को स्वच्छ रखने , निर्मल रखने में योगदान दे सकें . उन्होंने कहाकि हमने इसमें गैर राजनैतिक लोग जिनका सामाजिक क्षेत्रों में योगदान रहता ही उनको सम्मानित किया और शाम होते ही भव्य आरती की गयी .