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याद आती हैं किताबें ,ये उनकी हमदर्द थीं हमसाया थीं …..

बाऊ जी याद आते हैं तो किताबें याद आती हैं ।बाऊ जी किताब ओढते बिछाते थे ।उनकी छोटी सी कोठरी किताबों से भरी रहती थी ।जीवन की हर समस्या का समाधान उनके लिए किताबें ही थीं ।तमाम बार जब दिक्कतें सुरसा की तरह मुंह बाये खडीं थीं वे किताब पढ़ रहे थे ।पुरातन मूल्यों और आदर्शों पर चलने वाला वह आदमी व्यवहार शून्य तो नहीं था पर नये जमाने की चालाकियां होशियारियां उनमें नहीं थीं ।किताबें मौलिक ज्ञान से दूर करती हैं ।पढ़ लिखकर आप चाहें जो बन जायें दुनियां की नजर में सफल आदमी नहीं बन सकते ।कहने वाले बाऊ जी को असफल कह सकते हैं ।उनकी सफलता के मायने दूसरे थे ।जीर्ण शरीर लिये खटिया पर लेटे बाऊ जी पढ़ते पढ़ते थककर किताब से मुंह ढंक कर सो जाते । किताबें उनकी हमदर्द थीं हमसाया थीं ।वह उनकी ही निगाह से दुनिया को देखते थे । अंतिम समय तक उनके हाथ से किताब नहीं छूटी ।वे पढ़कर सीखते थे सीखकर पढ़ते थे ।उनके हर दुख का इलाज किताबें थीं  । प्रारंभिक दौर में वे मुझे मेरे लापरवाह स्वभाव के कारण अपनी  किताब छूने नहीं देते थे । मांगकर लेने पर दस सवाल करते थे ।पढ़ चुकी ?कब तक पढ़ोगी ?क्या पढ़ा ? दिन भर तो खाना बनाती रहती हो क्या पढ़ोगी ? यहां से पन्ना मोड़ दिया ।फ़ाड़ दोगी ।अब मत छूना कोई किताब ।इतनी हिदायतों और धमकियों के बाद मुझे चोरी की आदत पड़ गयी ।बाऊ जी जैसे ही बाहर जाते ।मेरी लाटरी निकल जाती ।उनका कमरा और मेरी मनपसंद किताबें ।मेरे जीवन के बेहद आनन्द के क्षण थे वे ।वहीं मिलें आचार्य चतुरसेन । कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी ।राहुल के सिंह सेना पति से भी चोरी की मुलाकात है ।शिवानी ।वहीं मिले यू आर अनंतमूर्ति ।वहीं ऊपर के खाने में बैठे थे हमारे मुंशी प्रेमचंद ।वहीं अलग अलग वैतरणी बह रही थी ।बाऊ जी के कमरे से ही निकल कर गंगा वोल्गा जाती थी ।राही वहीं से राह दिखाते थे ।हाय किताबें चुराकर पढ़ने में क्या सुख है मेरे जैसी चोरनी ही बता सकती है । हालांकि बाऊ जी बहुत सतर्क रहते थे और मेरी चोरी पकड़ी भी जाती थी तब मैं सर झुका कर डांट सुनलेती लेकिन चोरी से पढ़ने का क्रम जारी रहा ।बाद के दिनों में बाऊ जी किताबों के लिए मुझपर निर्भर रहने लगे थे ।फोन करके पूछते क्या क्या खरीदा है ? क्या पढ़ रही हो ? अच्छा ये ये वाली भिजवा देना। बाऊ जी बनारस जाते दवा लेने ।खरीद कर ले आते किताबें ।दवा छूट जाती । टेस्ट छूट जाता ।छूटतीं नहीं किताबें । मृत्यु ही उनसे किताबें छीन पायी  पर अब जब भी बाऊ जी याद आते हैं  याद आती हैं  किताबें ।
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