लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) के बागी विधायक अभय सिंह के खिलाफ 14 साल पुराने मामले में बुधवार को लखनऊ हाईकोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई होनी है। अभय सिंह पर हत्या का प्रयास और जानलेवा हमला करने के गंभीर आरोप हैं। इस केस में पहले ही हाईकोर्ट की दो अलग-अलग बेंचों ने परस्पर विरोधी फैसले दिए थे। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने मामले को न्यायमूर्ति राजन रॉय की बेंच को ट्रांसफर कर दिया। इस सुनवाई में उनके राजनीतिक करियर और कानूनी स्थिति पर अहम निर्णय आ सकता है।
मामला कैसे शुरू हुआ?
वर्ष 2010 में अयोध्या निवासी विकास सिंह ने अभय सिंह और उनके सहयोगियों पर अंधाधुंध फायरिंग और जान से मारने की कोशिश का आरोप लगाया था। विकास सिंह के अनुसार, यह घटना एक जानलेवा हमला थी, जिसे अभय सिंह ने अपने प्रभाव का उपयोग करके अंजाम दिया। अंबेडकर नगर पुलिस ने इस मामले में हत्या के प्रयास (धारा 307) और अन्य गंभीर धाराओं के तहत अभय सिंह समेत चार अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था।
निचली अदालत का फैसला
इस मामले में अंबेडकर नगर के एमपी/एमएलए कोर्ट ने सुनवाई के बाद 2023 में अभय सिंह और उनके सभी साथियों को बरी कर दिया। लेकिन इस फैसले के खिलाफ विकास सिंह ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। मामला लखनऊ हाईकोर्ट की बेंच में पहुंचा, जहां 20 दिसंबर 2024 को परस्पर विरोधी फैसले सुनाए गए।
हाईकोर्ट की दो बेंचों के फैसले
जस्टिस ए.आर. मसूदी की बेंच ने अभय सिंह समेत पांच आरोपियों को दोषी ठहराते हुए तीन साल की सजा और जुर्माने का आदेश दिया। वहीं, जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव ने सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया। इन परस्पर विरोधाभासी फैसलों के कारण यह मामला कानूनी पेचीदगी में उलझ गया।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली ने इस विवाद को सुलझाने के लिए केस को न्यायमूर्ति राजन रॉय की बेंच को ट्रांसफर किया। अब इस बेंच की सुनवाई में अंतिम निर्णय लिया जाएगा, जो अभय सिंह के भविष्य के लिए निर्णायक हो सकता है।
अभय सिंह का राजनीतिक सफर
अभय सिंह का जन्म अयोध्या के एक राजनीतिक परिवार में हुआ। उनके पिता भगवान बक्स सिंह भी राजनीति में सक्रिय थे। अभय सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1994 में स्नातक की शिक्षा पूरी की और समाजवादी पार्टी से जुड़कर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवार इंद्र प्रताप तिवारी को हराकर पहली बार विधायक बनने का गौरव प्राप्त किया।
हालांकि, 2017 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 2022 के चुनाव में उन्होंने फिर से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उम्मीदवार आरती तिवारी को हराया। वर्तमान में वह गोसाईगंज विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
राजनीतिक उलझन
फरवरी 2024 में राज्यसभा चुनाव के दौरान अभय सिंह ने भाजपा के उम्मीदवार को वोट दिया, जिससे उन्होंने समाजवादी पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने भाजपा के धनबल और बाहुबल के प्रभाव में आकर पार्टी लाइन से हटकर यह कदम उठाया। इस कारण से सपा नेतृत्व और उनके बीच खटास बढ़ गई।
हाईकोर्ट में बुधवार को होने वाली सुनवाई के नतीजे का अभय सिंह के राजनीतिक करियर पर गहरा असर पड़ेगा। यदि अदालत उन्हें दोषी ठहराती है, तो उनकी विधायकी रद्द हो सकती है और उनका राजनीतिक भविष्य संकट में आ सकता है। दूसरी ओर, यदि उन्हें बरी कर दिया जाता है, तो यह उनके लिए बड़ी राहत होगी और उनके राजनीतिक प्रभाव को मजबूती मिलेगी।
कानूनी और राजनीतिक महत्व
यह मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि गहरी राजनीतिक महत्ता भी रखता है। समाजवादी पार्टी के भीतर बगावत करने वाले विधायकों के प्रति सख्ती और भाजपा के साथ उनकी नजदीकियों को लेकर कई सवाल उठे हैं। इस फैसले से आने वाले चुनावों में भी राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं।