हाफिज नौशाद आजमी, जो पिछले 25 वर्षों से हज यात्रा के लिए कार्यरत हैं और 2002 के हज विधेयक के पीछे एक प्रमुख भूमिका निभा चुके हैं, उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान केंद्र सरकार के रवैये और उदासीनता पर कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने कहाकि इस मामले को लेकर न्यायालय का सहारा लिया और विभिन्न मंचों पर अपनी बात रखी है…
अक्टूबर 2021 में, हाफिज नौशाद आजमी ने हज कमेटी ऑफ इंडिया के गठन की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की।
27 मार्च 2023 को, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर हज कमेटी का गठन किया जाए। हालांकि, यह आदेश अभी तक पूरा नहीं हुआ है।
इसके बाद, अक्टूबर 2023 में न्यायालय की अवमानना की याचिका दायर की गई, जिसमें 15 अप्रैल 2024 तक केंद्र सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया।
केंद्र सरकार ने 12 अप्रैल 2024 को दाखिल किए गए हलफनामे में अपनी लाचारी जाहिर की, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्षों द्वारा नाम नहीं भेजने की बात कही गई।
27 अप्रैल 2022 को जारी की गई अधिसूचना में, हज विधेयक 2002 की अवहेलना करते हुए आठ सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया, जिसमें पार्टी कार्यकर्ताओं को नामित किया गया।
2016 में, हज कमेटी को विदेश मंत्रालय से अल्पसंख्यक मंत्रालय में स्थानांतरित किया गया, जिसके खिलाफ विरोध भी किया गया।2008 में शुरू हुई कमेटी की पारदर्शिता और वेबसाइट पर कार्रवाई रिपोर्ट डालने की परंपरा 2016 के बाद खत्म हो गई।मुंबई के अलावा अन्य शहरों में हज कार्यालयों के नाम पर भ्रष्टाचार और अवैध निर्माण के आरोप भी लगाए गए।
हाफिज नौशाद आजमी ने विपक्षी नेताओं से भी इस मुद्दे पर समर्थन और मदद की गुहार लगाई है, ताकि 2002 के हज विधेयक के अनुसार कमेटी का गठन हो सके और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनकर को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और समय पर नाम भेजने चाहिए।
हाफिज नौशाद आजमी ने केंद्र सरकार की उदासीनता और अडियल रवैये के खिलाफ कड़ा विरोध जताया है और हज कमेटी के गठन में हो रही देरी पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने इस मामले को लेकर न्यायालय का सहारा लिया है और विपक्षी नेताओं से भी समर्थन की मांग की है, ताकि हज यात्रियों को हो रही समस्याओं का समाधान हो सके और पारदर्शिता बनी रहे।
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