जनवादी लेखक संघ लखनऊ की ओर से कैफ़ी आज़मी एकेडमी में ‘रच रही हैं वे’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत लेखिकाओं को पुस्तक देकर सम्मानित करने से हुई। उसके बाद ‘कितनी कम जगहें हैं’ कविता संग्रह से चर्चित हुई कवयित्री सीमा सिंह ने अपनी कविताओं का पाठ किया। उनकी कविताओं में समय की शिनाख्त बेहतरीन तरीके से की गई थी। ‘शीला सिद्धांतकर सम्मान’ से सम्मानित ‘तुम फिर आना बसंत’ कविता संग्रह से चर्चित कवयित्री शालू शुक्ला की कविताओं में प्रेम और संवेदना की गाढ़ी बुनावट की गई थी। ‘राजेन्द्र यादव कथा सम्मान’ से सम्मानित कहानीकार समीना खान ने पुरस्कृत कहानी ‘राकिया की अम्मा’ का पाठ किया। कथाकार सोनी पाण्डेय ने अपने उपन्यास ‘सुनो कबीर’ के कुछ अंशों का पाठ किया। ‘राकिया की अम्मा’ कहानी पर विचार व्यक्त करते हुए नाइश हसन ने कहा कि इस पहली कहानी से ही समीना मँजी हुई कहानीकार सिद्ध होती हैं। कहानी में आए चरित्र आसपास के लगते हैं और कहानी दृष्यबिम्बों से आपको बाहर नहीं निकलने देती। इसकी भाषा में माधुर्य है। कहानी भ्रष्टाचार और गरीबी को सामने लाती है। लुप्त होती हस्तकलाओं की चर्चा इसे विशिष्ट बनाती है। बालश्रम की ओर भी कहानी ध्यान खींचती है। ये कहानी तमाम सवाल उठाती है जिनका हल ढूंढा जाना जरूरी है। सीमा सिंह की कविताओं पर उन्होंने कहा कि उनकी धार बहुत तेज है। वे पितृसत्ता को चुनौती देती हैं और तमाम सवाल करती हैं। उनकी कविताओं का फलक बहुत विस्तृत है।
‘सुनो कबीर’ उपन्यास पर प्रकाश डालते हुए प्रीति चौधरी ने कहा कि उपन्यास आज के विभत्स हो रहे समाज का सच बयान करता है। इसमें प्रवाह है जो कथा को पाठक से जोड़े रखता है। इसमें कई पात्र हैं जो विद्रोह का झंडा उठाते हैं। प्रीति चौधरी ने कहा कि वास्तव में ये लेखिकाएँ रच ही नहीं रही हैं, बल्कि विद्रोह का स्वर उठा रही हैं। वे ग़लत के खिलाफ बोल रही हैं यही बड़ी बात है। उन्होंने ये भी कहा कि उपन्यास में और भी विस्तार होता तो अच्छा होता। फिर भी उपन्यास अपनी बात पूरी शिद्दत से कह जाता है। शालू शुक्ला की कविताओं पर उन्होंने कहा कि इनकी कविताओं में प्रेम भरा हुआ है। लेकिन इन कविताओं से अलग ‘हाउसवाइफ’ जैसी कविता इनको विशिष्ट कवयित्री बना देता है। इसमें उनकी संवेदना परिलक्षित होती है। शालू की कविताओं में सतत विकास दिखाई देता है।
कार्यक्रम का कुशल संचालन कवयित्री और जलेस लखनऊ की कार्यकारी सचिव शालिनी सिंह ने किया। इस अवसर पर सभागार में तमाम साहित्यप्रेमी मौजूद थे।
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